बच्चों की दयालुता की कहानी
एक छोटे से गाँव में, जहाँ हर तरफ हरे-भरे खेत थे और बच्चे खेलते-कूदते रहते थे, वहाँ कुछ विशेष बच्चों की एक टोली थी। ये बच्चे अपनी मासूमियत और दयालुता के लिए पूरे गाँव में मशहूर थे। उनमें से चार दोस्त थे—आर्यन, सिया, मोहन, और दीक्षा।
एक दिन, बच्चों ने देखा कि गाँव के एक बुजुर्ग किसान, दादा जी, अपने खेत में काम कर रहे थे। उनकी उम्र ज्यादा थी और वह अकेले ही बहुत मेहनत कर रहे थे। बच्चों ने सोचा कि क्यों न दादा जी की मदद की जाए। आर्यन ने कहा, “चलो, हम उन्हें मदद करते हैं।”
सिया ने तुरंत अपनी सहमति दी, “हाँ, हमें मिलकर उनकी मदद करनी चाहिए।” मोहन और दीक्षा भी इस विचार से सहमत हो गए। चारों बच्चे दादा जी के पास गए और बोले, “दादा जी, क्या हम आपकी मदद कर सकते हैं?”
दादा जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “बिलकुल, बच्चों। तुम्हारी मदद से मुझे बहुत खुशी होगी।” बच्चे तुरंत काम में लग गए। उन्होंने दादा जी के साथ मिलकर खेत में हल चलाया, बीज बोए और पानी दिया।
जब उन्होंने अपना काम पूरा किया, तो दादा जी ने उन्हें धन्यवाद कहा। “तुम बच्चों ने मेरे लिए बहुत बड़ा काम किया है। अब मैं अपने काम को जल्दी पूरा कर सकूंगा।” बच्चों की आँखों में खुशी झलक उठी। उन्होंने महसूस किया कि दयालुता का असली मतलब क्या होता है।
कुछ दिन बाद, गाँव में एक बड़ा मेला लगा। सभी बच्चे मेला देखने के लिए उत्सुक थे। लेकिन जब उन्होंने देखा कि दादा जी अकेले अपने खेत में काम कर रहे हैं, तो उन्होंने सोचा कि पहले दादा जी की मदद करनी चाहिए।
बच्चों ने दादा जी की मदद की और फिर मेले की तैयारी में जुट गए। मेले में कई तरह के खेल, झूले और खाने-पीने की चीजें थीं। बच्चे खुशी-खुशी मेले में गए। वहां उन्होंने खूब मस्ती की और विभिन्न खेलों में भाग लिया।
एक झूला झूलते समय, मोहन ने देखा कि एक छोटा बच्चा, जो अकेला था, झूले की तरफ देखकर बस देख रहा था। मोहन ने तुरंत उसे बुलाया। “तुम क्यों अकेले हो? आओ, हमारे साथ झूला झूलो!” बच्चा थोड़ा हिचकिचाया लेकिन फिर मोहन की दयालुता देखकर झूले में आ गया।
जब बच्चे झूला झूलने लगे, तो उन्होंने और बच्चों को भी बुलाया। धीरे-धीरे सभी बच्चे एक साथ झूला झूलने लगे। इससे बच्चे का चेहरा खिल उठा। उसने मोहन का धन्यवाद कहा और कहा, “मैंने सोचा था कि कोई मुझे नहीं देखेगा, लेकिन तुमने मेरी मदद की।”
सिया ने कहा, “दोस्ती और दयालुता का यही तो मतलब है। हम सब एक साथ मिलकर खुश रह सकते हैं।”
कुछ दिनों बाद, दादा जी ने बच्चों को बुलाया और कहा, “तुम लोगों ने मेरी बहुत मदद की है। मैं तुम्हें एक छोटा सा उपहार देना चाहता हूँ।” दादा जी ने उन्हें ताजे फल और सब्जियाँ दीं।
बच्चों ने कहा, “नहीं, दादा जी। हमें आपकी मदद करके बहुत खुशी हुई। यह आपके लिए है।” लेकिन दादा जी ने आग्रह किया, “नहीं, यह तुम्हारा हक है।”
बच्चों ने खुशी-खुशी उपहार स्वीकार किया और सोचा कि दयालुता का एक और फल यह है कि जब आप दूसरों की मदद करते हैं, तो वे भी आपकी सराहना करते हैं।
गाँव में बच्चों की दयालुता की मिसाल बनने लगी। धीरे-धीरे अन्य बच्चे भी प्रेरित होने लगे। उन्होंने दादा जी की तरह ही बुजुर्गों और जरूरतमंदों की मदद करने की ठानी।
एक दिन, आर्यन ने कहा, “हमने जो दयालुता की शुरुआत की थी, वो अब पूरे गाँव में फैल रही है।” सभी बच्चे खुशी से मुस्कुराए और उनकी आँखों में एक नई उम्मीद जगी।
इस तरह, गाँव में बच्चों की दयालुता ने न केवल उनके दिलों को जोड़ा, बल्कि गाँव के सभी निवासियों को एक नई दिशा दिखाई। बच्चे समझ गए कि दयालुता एक ऐसा बीज है, जिसे जब आप दूसरों में बोते हैं, तो वह न केवल उनके जीवन में खुशी लाता है, बल्कि आपको भी खुशियों से भर देता है।
निष्कर्ष
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि दयालुता कभी भी छोटी नहीं होती। जब हम किसी की मदद करते हैं, तो न केवल हम उन्हें खुशी देते हैं, बल्कि खुद को भी एक सच्चा दोस्त और साथी बनाते हैं। बच्चों की यह दयालुता उनके जीवन का अनमोल हिस्सा बन गई, जो उन्हें हमेशा प्रेरित करती रहेगी।