सोच सोच के हार गई
थक हार के बैठ गयी
कैसे ढूंढू वो चाबी
जो मेरे से जाने कैसे गुम गयी
अब क्या होगा कैसे होगा
ये जीवन गुत्थी उलझ गई
जब तलक नही मिलेगी
मेरी किस्मत यूँ ही बंध गई
इतनी कस के पकड़ी थी ताली
जाने कैसे छूट गयी
होश नही अब सुध बुध भूली
हँसती किस्मत पलट गई
देख देख चकराए है बुद्धि
इतनी टेढ़ी राहे हैं
बिना साथ बिना प्यार के
वो चाबी कैसे अब मिलेगी..??
बिना सहारे कैसे पाऊं
अपनी खुशियों की चाबी को
डर के मारे हौसले पस्त हैं
ये किस्मत मेरी पसर गयी
देखो तुम जो साथ दो मेरा
हर मुश्किल से निबट लूँगी
माना मुश्किल है साथ मेरे चलना
पर तेरे लिए ये नामुमकिन नही
ऊंची नीची राहों पर
साथ तेरा ही चाहिए मुझे
हाथ पकड़ देता है जब सहारा
मैं कठिनाई सारी भूल गयी।
* मेधा शर्मा *