फूलों से इतना लगाव तो नही
पर मेरी ज़िन्दगी में बहार लाने वाले उस फूल के लिए कुछ कर गुजरने का ज़ज़्बा खूब रखती हूँ
जाड़ों की गुनगुनी धूप
गर्मियों की शामें
और बरसात की हरियाली
मुझे मायूस करते हैं
मैं कुछ खो सी जाती हूँ
फिर…
जब एहसास होता है तेरे होने का मुझे
बेजान सी ज़िन्दगी उस अभी अभी खिले गुलाब की तरह लगती है….
जाने कितने रंग हैं मेरे इस गुलाब के
बिलकुल अपने नाम की तरह
“आकाश” के अनेकों रूप
भर जाते हैं मेरी झोली में…
और मैं समेट भी नही पाती
और खिलखिला जाती हूँ…
कभी तेरे ख्यालात हैरान परेशां करते हैं
पर फिर तू आकर संभाल लेता है एक छोटे बच्चे की तरह,,
और……
और कभी मेरे जज़्बात
हावी होते जाते हैं
फिर एक सावन आता है
सब कुछ बह सी जाती हूँ
मुझे महसूस होता है
मैं खो रही हूँ तुझमे कहीं
अपने गुलाब के रंगों में
तेरी महक में
और निकलना भी नही चाहती ….!!!
*मेधा शर्मा*