श्याम बेनेगल(Shyam Benegal) भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख निर्देशक, पटकथा लेखक और वृत्तचित्र निर्माता थे, जिन्हें समानांतर सिनेमा के अग्रदूतों में से एक माना जाता है। 14 दिसंबर 1934 को हैदराबाद में जन्मे बेनेगल ने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण फिल्मों का निर्देशन किया, जिन्होंने भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी। 23 दिसंबर 2024 को 90 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
श्याम बेनेगल(Shyam Benegal) का जन्म हैदराबाद राज्य (अब तेलंगाना) में हुआ था। उनके पिता, श्रीधर बी. बेनेगल, फोटोग्राफी के क्षेत्र में प्रसिद्ध थे। बेनेगल ने उस्मानिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की और वहीं हैदराबाद फिल्म सोसाइटी की स्थापना की। 12 वर्ष की आयु में, उन्होंने अपने पिता द्वारा उपहार में दी गई कैमरा से अपनी पहली फिल्म बनाई।
व्यक्तिगत जीवन
बेनेगल का विवाह नीरा बेनेगल से हुआ, और उनकी एक पुत्री, पिया बेनेगल हैं, जो एक प्रसिद्ध कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर हैं और कई फिल्मों में काम कर चुकी हैं।
प्रारंभिक करियर
1959 में, बेनेगल ने मुंबई स्थित लिंटास एडवरटाइजिंग एजेंसी में कॉपीराइटर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की और धीरे-धीरे क्रिएटिव हेड के पद तक पहुंचे। 1962 में, उन्होंने अपनी पहली गुजराती वृत्तचित्र फिल्म ‘घर बैठा गंगा’ बनाई। 1966 से 1973 के बीच, उन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे में पढ़ाया और दो बार इसके अध्यक्ष भी रहे। अपने विज्ञापन करियर के दौरान, उन्होंने 900 से अधिक प्रायोजित वृत्तचित्र और विज्ञापन फिल्में निर्देशित कीं।
फीचर फिल्मों का निर्देशन
बेनेगल की पहली फीचर फिल्म ‘अंकुर’ (1973) थी, जो तेलंगाना में आर्थिक और यौन शोषण पर आधारित एक यथार्थवादी ड्रामा थी। इस फिल्म ने शबाना आज़मी और अनंत नाग जैसे अभिनेताओं को परिचित कराया और बेनेगल को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिलाया। इसके बाद, ‘निशांत’ (1975), ‘मंथन’ (1976) और ‘भूमिका’ (1977) जैसी फिल्मों ने उन्हें समानांतर सिनेमा का प्रमुख निर्देशक बना दिया। ‘मंथन’ विशेष रूप से गुजरात की दुग्ध क्रांति पर आधारित थी, जिसमें 5 लाख से अधिक किसानों ने 2 रुपये का योगदान देकर फिल्म का निर्माण किया।
1990 के दशक और आगे का सफर
1990 के दशक में, बेनेगल ने भारतीय मुस्लिम महिलाओं पर केंद्रित त्रयी बनाई, जिसमें ‘मम्मो’ (1994), ‘सरदारी बेगम’ (1996) और ‘जुबैदा’ (2001) शामिल हैं। ‘जुबैदा’ में करिश्मा कपूर ने मुख्य भूमिका निभाई और ए. आर. रहमान ने संगीत दिया, जिससे बेनेगल मुख्यधारा बॉलीवुड में प्रवेश कर गए। उन्होंने ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ (1992) और ‘द मेकिंग ऑफ द महात्मा’ (1996) जैसी फिल्में भी निर्देशित कीं। 2005 में, उन्होंने ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस: द फॉरगॉटन हीरो’ का निर्देशन किया।
पुरस्कार और सम्मान
बेनेगल को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें 18 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, एक फिल्मफेयर पुरस्कार और एक नंदी पुरस्कार शामिल हैं। उन्हें 1976 में पद्म श्री, 1991 में पद्म भूषण और 2005 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
निधन
23 दिसंबर 2024 को मुंबई में किडनी रोग के कारण श्याम बेनेगल का निधन हो गया। उनकी मृत्यु से भारतीय सिनेमा में एक युग का अंत हो गया, लेकिन उनकी फिल्में और योगदान सदैव याद किए जाएंगे।