समीर और नेहा की शादी के बाद ज़िंदगी बेहद खूबसूरत लग रही थी। हर चीज़ मानो एक सपने जैसी थी। नेहा ने कभी सोचा भी नहीं था कि उसकी ज़िंदगी इतनी खुशहाल हो जाएगी। शादी के बाद सबकुछ नया-नया, रोमांचक था। समीर के साथ बिताए पल उसके लिए जन्नत से कम नहीं थे, और समीर का परिवार भी उसे पूरी तरह से अपनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था। नेहा अपने नए घर में खुद को एक राजकुमारी की तरह महसूस कर रही थी।
समीर के ऑफिस जाने के बाद नेहा का दिन थोड़ा खाली-खाली लगने लगा। उसकी सासू मां ने भी उसे काम करने के लिए नहीं कहा था, क्योंकि वह चाहती थीं कि नेहा आराम करे। लेकिन नेहा खुद ही काम में हाथ बंटाने की कोशिश करती। दिन के 11 बजे तक सब काम निपट जाता और नेहा खुद को किताबों में डुबो देती। लेकिन हर रोज़ नई किताबें ढूंढना मुश्किल हो गया था।
नेहा की सासू मां उसकी स्थिति को समझ गईं और एक दिन उन्होंने सुझाव दिया, “नेहा, अगर तुम्हें किताबें पढ़ने का इतना शौक है तो क्यों न तुम पास की लाइब्रेरी की सदस्य बन जाओ? वहाँ तुम्हें बहुत सारी किताबें मिलेंगी।”
नेहा को यह सुझाव बहुत पसंद आया और अगले ही दिन उसने लाइब्रेरी की सदस्यता ले ली। लाइब्रेरी में उसकी मुलाकात एक बुजुर्ग व्यक्ति, अरविंद अंकल से हुई। अरविंद अंकल का व्यक्तित्व बहुत ही जिंदादिल और ज्ञान से भरा हुआ था। वे राजनीति से लेकर समाजशास्त्र तक हर विषय पर घंटों बात कर सकते थे। नेहा और अरविंद अंकल की बातचीत का सिलसिला बढ़ता गया। वे लगभग रोज़ ही लाइब्रेरी में मिलते थे और ढेर सारी बातें करते थे।
एक दिन नेहा ने देखा कि अरविंद अंकल का बेटा, राहुल, लाइब्रेरी के बाहर उसका इंतज़ार कर रहा है। वह थोड़ा चिंतित लग रहा था। नेहा ने पूछा, “क्या हुआ, राहुल भैया? आप कुछ परेशान दिख रहे हैं।”
राहुल ने थोड़ी झिझक के साथ कहा, “नेहा, क्या तुमने कभी अरविंद अंकल के साथ कोई महिला देखी है? लोग कह रहे हैं कि पापा किसी महिला के साथ बहुत समय बिता रहे हैं। मैं बहुत परेशान हूँ। क्या तुम इस बारे में उनसे बात कर सकती हो?”
नेहा को यह बात अजीब लगी, लेकिन उसने राहुल की बात मान ली। अगली बार जब अरविंद अंकल से मुलाकात हुई, तो उसने धीरे-धीरे बातों का रुख मोड़ते हुए पूछा, “अंकल, आप शाम को क्या करते हैं?”
अरविंद अंकल ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं पार्क में सैर करता हूँ और एक हमउम्र महिला से बातें करता हूँ। हम पुरानी यादें ताज़ा करते हैं, अपनी छोटी-छोटी समस्याएं साझा करते हैं।”
नेहा को अरविंद अंकल की बातों से सुकून मिला। उसने समझा कि उम्र के इस पड़ाव पर भी लोगों को दोस्ती और संगति की जरूरत होती है, चाहे वह किसी भी रूप में हो। नेहा ने यह बात राहुल को बताई और उसे समझाया कि उसके पिता का किसी से बातें करना, खुश रहना, उम्र के इस पड़ाव पर ज़रूरी है।
समय बीतता गया, और नेहा की ज़िंदगी में एक नई समझ आई। उसने सीखा कि इंसान की सोच और विचारधारा समय के साथ बदलते हैं, और यही ज़िंदगी का सबसे बड़ा मापदंड है।
“दोस्ती और विश्वास के रंग बदलते हैं, पर उनका सच्चा रंग हमेशा वही रहता है — जो दिल से निकला हो, वो दिल तक पहुंचता है।”
“जैसे मौसम के बदलते रंग नयी तस्वीर पेश करते हैं, वैसे ही जीवन के बदलते रंग नई कहानियाँ बुनते हैं।”